संवत्सर
के नाम व फल
भारतीय संस्कृति में चन्द्र वर्ष (lunar
Year) का प्रयोग किया जाता है | चन्द्र वर्ष को ही
संवत्सर कहा जाता है | संवत्सर ऋतुओं के एक पूरे एक चक्र का होता है |
ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से किया था अतः नव संवत का प्रारम्भ भी
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता
है | हिंदू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में
संकल्प करते समय उस समय
के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है |
२०१७ /२०१८ इस वर्ष का संवत्सर है "हेम्लंबी"
संवत्सर
का नाम
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वर्ष
फल
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फल
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1.
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प्रभव
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प्रजा में यज्ञादि शुभ कार्यों की भावना हो|
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2.
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विभव
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प्रजा में सुख समृद्धि हो |
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3.
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शुक्ल
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विश्व में धान्य प्रचुर मात्रा में हो |
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4.
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प्रमोद
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प्रजा में आमोद प्रमोद ,सुख वैभव की वृद्धि हो
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5.
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प्रजापति
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विश्व में चतुर्विध उन्नति हो
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6.
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अंगिरा
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भोग विलास की वृद्धि हो
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7.
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श्री मुख
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जनसँख्या में अधिक वृद्धि हो
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8.
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भाव
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प्राणियों में सद्भावना बढे
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9.
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युवा
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मेघों द्वारा प्रचुर वृष्टि हो
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10.
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धाता
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विश्व में समस्त औषधियों की वृद्धि हो
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11.
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ईश्वर
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आरोग्य व क्षेम की प्राप्ति हो
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12.
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बहुधान्य
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अन्न की प्रचुरता हो
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13.
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प्रमाथी
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शुभाशुभ प्रकार का मध्यम वर्ष हो
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14.
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विक्रम
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अन्न की अधिकता रहे
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15.
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वृष
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प्रजा जनों का पोषण हो
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16.
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चित्रभानु
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विचित्र घटनाएं हों
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17.
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सुभानु
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आरोग्यकारक व कल्याणकारी वर्ष हो
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18.
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तारण
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मेघों द्वारा शुभकारक वर्षा हो
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19.
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पार्थिव
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सस्य संपत्ति की वृद्धि हो
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20.
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अव्यय
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अतिवृष्टि हो
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21.
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सर्वजीत
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उत्तम वृष्टि का योग
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22.
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सर्वधारी
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धान्यों की अधिकता
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23.
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विरोधी
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अनावृष्टि
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24.
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विकृति
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भय कारक घटनाएं
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25.
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खर
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पुरुषों में साहस व वीरता का संचार
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26.
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नंदन
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प्रजा में आनंद
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27.
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विजय
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दुष्टों का नाश
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28.
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जय
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रोगों का शमन
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29.
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मन्मथ
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विश्व में ज्वर का प्रकोप
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30.
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दुर्मुख
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मनुष्यों की वाणी में कटुता
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31.
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हेम्लम्बी
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सम्पदा की वृद्धि
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32.
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विलम्बी
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अन्न की प्रचुरता
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33.
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विकारी
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दुष्ट व शत्रु कुपित हों
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34.
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शार्वरी
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कृषि में वृद्धि
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35.
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प्लव
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नदियों में बाढ़ का प्रकोप
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36.
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शुभकृत
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प्रजा में शुभता
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37.
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शोभकृत
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शुभ फलों की वृद्धि
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38.
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क्रोधी
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स्त्री –पुरुषों में वैर ,रोग वृद्धि
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39.
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विश्वावसु
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अन्न महंगा ,रोग व चोरों की वृद्धि,राजा लोभी
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40.
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पराभव
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रोग वृद्धि, प्रचुर वृष्टि,राजा का तिरस्कार ,तुच्छ धान्यों की अधिकता
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41.
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प्ल्वंग
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कृषि हानि ,प्रजा में रोग व चोरी ,राजाओं का युद्ध
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42.
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कीलक
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पित्त विकार ,मध्यम वर्षा ,सर्प भय ,प्रजा
में कलह
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43.
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सौम्य
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राजा प्रसन्न ,शीत प्रकृति के रोग, मध्यम वर्षा ,सर्प भय
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44.
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साधारण
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राजा व प्रजा सुखी ,कृषि के लिए वर्षा उत्तम
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45.
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विरोधकृत
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राजाओं में वैर –भाव , मध्यम वर्षा,प्रजा में
आनंद
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46.
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परिधावी
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अन्न महंगा , मध्यम वर्षा,प्रजा में रोग ,उपद्रव
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47.
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प्रमादी
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जनता में आलस्य व प्रमाद की वृद्धि
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48.
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आनंद
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जनता में सुख व आनंद
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49.
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राक्षस
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प्रजा में निष्ठुरता की वृद्धि
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50.
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आनल
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विविध धान्यों की वृद्धि
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51.
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पिंगल
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कहीं उत्तम व कहीं मध्यम वृष्टि
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52.
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कालयुक्त
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धन –धन्य की हानि
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53.
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सिद्धार्थी
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सम्पूर्ण कार्यों की सिध्धि
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54.
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रौद्र
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विश्व में रौद्र भाव की अधिकता
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55.
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दुर्मति
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मध्यम वृष्टि
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56.
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दुन्दुभी
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धन –धान्य की वृद्धि
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57.
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रूधिरोद्गारी
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हिंसक घटनाओं से रक्तपात
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58.
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रक्ताक्षी
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रक्तपात से जनहानि
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59.
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क्रोधन
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शासकों को विजय प्राप्त
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60.
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क्षय
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प्रजा का धन क्षीण
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