पितृ / श्राद्ध पक्ष 2023 – Pitru / Shraddh Paksh 2023





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पितृ पक्ष श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।

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(1)    प्रतिपदा श्राद्ध शुक्रवार, सितम्बर 29, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:40 ए एम से 12:28 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:28 पी एम से 01:16 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:16 पी एम से 03:40 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 24 मिनट्स
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 29, 2023 को 03:26 पी एम बजे    
प्रतिपदा तिथि समाप्त - सितम्बर 30, 2023 को 12:21 पी एम बजे

प्रतिपदा श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि पर हुई हो।
प्रतिपदा श्राद्ध तिथि को नाना-नानी का श्राद्ध करने के लिए भी उपयुक्त माना गया है। यदि मातृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए कोई व्यक्ति नहीं है, तो इस तिथि पर श्राद्ध करने से नाना-नानी की आत्मायें प्रसन्न होती हैं। यदि किसी को नाना-नानी की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, तो भी इस तिथि पर उनका श्राद्ध किया जा सकता है। माना जाता है कि, इस श्राद्ध को करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।

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(2)    द्वितीया श्राद्ध शनिवार, सितम्बर 30, 2023 को


कुतुप मूहूर्त - 11:40 ए एम से 12:28 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:28 पी एम से 01:15 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:15 पी एम से 03:39 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 24 मिनट्स
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 30, 2023 को 12:21 पी एम बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - अक्टूबर 01, 2023 को 09:41 ए एम बजे

द्वितीया श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु द्वितीया तिथि पर हुई हो।
द्वितीया श्राद्ध को दूज श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।


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(3)    तृतीया श्राद्ध रविवार, अक्टूबर 1, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:39 ए एम से 12:27 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:27 पी एम से 01:15 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:15 पी एम से 03:38 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 23 मिनट्स
तृतीया तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 01, 2023 को 09:41 ए एम बजे
तृतीया तिथि समाप्त - अक्टूबर 02, 2023 को 07:36 ए एम बजे

तृतीया श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई हो।
तृतीया श्राद्ध को तीज श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।


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(4)    चतुर्थी श्राद्ध सोमवार, अक्टूबर 2, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:39 ए एम से 12:27 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:27 पी एम से 01:15 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:15 पी एम से 03:38 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 23 मिनट्स
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 02, 2023 को 07:36 ए एम बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 03, 2023 को 06:11 ए एम बजे

चतुर्थी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु चतुर्थी तिथि पर हुई हो।
चतुर्थी श्राद्ध को चौथ श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।


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(5)    पञ्चमी श्राद्ध मंगलवार, अक्टूबर 3, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:39 ए एम से 12:26 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:26 पी एम से 01:14 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:14 पी एम से 03:37 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 23 मिनट्स
पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 03, 2023 को 06:11 ए एम बजे
पञ्चमी तिथि समाप्त - अक्टूबर 04, 2023 को 05:33 ए एम बजे

पञ्चमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु पञ्चमी तिथि पर हुई हो।
पञ्चमी श्राद्ध को कुँवारा पञ्चमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन उन मृतकों के लिये श्राद्ध करना चाहिये जिनकी मृत्यु उनके विवाह के पूर्व हो गयी हो।


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(6)    षष्ठी श्राद्ध बुधवार, अक्टूबर 4, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:39 ए एम से 12:26 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:26 पी एम से 01:14 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:14 पी एम से 03:36 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 23 मिनट्स
षष्ठी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 04, 2023 को 05:33 ए एम बजे
षष्ठी तिथि समाप्त - अक्टूबर 05, 2023 को 05:41 ए एम बजे

षष्ठी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि पर हुई हो।
षष्ठी श्राद्ध को छठ श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।


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(7)    सप्तमी श्राद्ध बृहस्पतिवार, अक्टूबर 5, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:38 ए एम से 12:26 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:26 पी एम से 01:13 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:13 पी एम से 03:36 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 23 मिनट्स
सप्तमी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 05, 2023 को 05:41 ए एम बजे
सप्तमी तिथि समाप्त - अक्टूबर 06, 2023 को 06:34 ए एम बजे

सप्तमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि पर हुई हो।


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(8)    अष्टमी श्राद्ध शुक्रवार, अक्टूबर 6, 2023 को
 

कुतुप मूहूर्त - 11:38 ए एम से 12:25 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:25 पी एम से 01:13 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:13 पी एम से 03:35 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 22 मिनट्स
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 06, 2023 को 06:34 ए एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त - अक्टूबर 07, 2023 को 08:08 ए एम बजे

अष्टमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि पर हुई हो। 



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(9)    नवमी श्राद्ध शनिवार, अक्टूबर 7, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:38 ए एम से 12:25 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:25 पी एम से 01:12 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:12 पी एम से 03:34 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 22 मिनट्स
नवमी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 07, 2023 को 08:08 ए एम बजे
नवमी तिथि समाप्त - अक्टूबर 08, 2023 को 10:12 ए एम बजे

नवमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु नवमी तिथि पर हुई हो।

नवमी श्राद्ध तिथि को मातृनवमी के रूप में भी जाना जाता है। यह तिथि माता का श्राद्ध करने के लिये सबसे उपयुक्त दिन होता है। इस तिथि पर श्राद्ध करने से परिवार की सभी मृतक महिला सदस्यों की आत्मा प्रसन्न होती है। नवमी श्राद्ध को नौमी श्राद्ध तथा अविधवा श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।



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(10)    दशमी श्राद्ध रविवार, अक्टूबर 8, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:37 ए एम से 12:25 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:25 पी एम से 01:12 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:12 पी एम से 03:34 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 22 मिनट्स
दशमी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 08, 2023 को 10:12 ए एम बजे
दशमी तिथि समाप्त - अक्टूबर 09, 2023 को 12:36 पी एम बजे

दशमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु दशमी तिथि पर हुई हो। 



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(11)    एकादशी श्राद्ध सोमवार, अक्टूबर 9, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:37 ए एम से 12:24 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:24 पी एम से 01:12 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:12 पी एम से 03:33 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 22 मिनट्स
एकादशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 09, 2023 को 12:36 पी एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 10, 2023 को 03:08 पी एम बजे

एकादशी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु एकादशी तिथि पर हुई हो।
एकादशी श्राद्ध को ग्यारस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।

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(12)    द्वादशी श्राद्ध बुधवार, अक्टूबर 11, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:37 ए एम से 12:24 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:24 पी एम से 01:11 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:11 पी एम से 03:32 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 21 मिनट्स
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 10, 2023 को 03:08 पी एम बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 11, 2023 को 05:37 पी एम बजे

द्वादशी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि पर हुई हो।
जो लोग मृत्यु से पूर्व सन्यास ग्रहण कर लेते हैं, उनके श्राद्ध के लिये भी द्वादशी तिथि उपयुक्त मानी जाती है।
द्वादशी श्राद्ध को बारस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।

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(13)    त्रयोदशी श्राद्ध बृहस्पतिवार, अक्टूबर 12, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:37 ए एम से 12:24 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:24 पी एम से 01:10 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:10 पी एम से 03:31 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 21 मिनट्स
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 11, 2023 को 05:37 पी एम बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 12, 2023 को 07:53 पी एम बजे

त्रयोदशी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु त्रयोदशी तिथि पर हुई हो।
त्रयोदशी श्राद्ध तिथि मृत बच्चों के श्राद्ध के लिये भी उपयुक्त है। इस श्राद्ध तिथि को गुजरात में काकबली एवं बालभोलनी तेरस के नाम से भी जाना जाता है। त्रयोदशी श्राद्ध को तेरस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।

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(14)    चतुर्दशी श्राद्ध शुक्रवार, अक्टूबर 13, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:36 ए एम से 12:23 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:23 पी एम से 01:10 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:10 पी एम से 03:31 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 21 मिनट्स
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 12, 2023 को 07:53 पी एम बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 13, 2023 को 09:50 पी एम बजे

चतुर्दशी श्राद्ध तिथि केवल उन मृतकों के श्राद्ध के लिये उपयुक्त है, जिनकी मृत्यु किन्हीं विशेष परिस्थितियों में हुई हो, जैसे किसी हथियार द्वारा मृत्यु, दुर्घटना में मृत्यु, आत्महत्या अथवा किसी अन्य द्वारा हत्या। इनके अतिरिक्त चतुर्दशी तिथि पर किसी अन्य का श्राद्ध नहीं किया जाता है, अपितु इनके अतिरिक्त चतुर्दशी पर होने वाले अन्य श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किये जाते हैं।
चतुर्दशी श्राद्ध को घट चतुर्दशी श्राद्ध, घायल चतुर्दशी श्राद्ध तथा चौदस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।


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(15)    अमावस्या श्राद्ध शनिवार, अक्टूबर 14, 2023 को

कुतुप मूहूर्त - 11:36 ए एम से 12:23 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
रौहिण मूहूर्त - 12:23 पी एम से 01:10 पी एम / अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट्स
अपराह्न काल - 01:10 पी एम से 03:30 पी एम / अवधि - 02 घण्टे 20 मिनट्स
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 13, 2023 को 09:50 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त - अक्टूबर 14, 2023 को 11:24 पी एम बजे

अमावस्या तिथि श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि तथा चतुर्दशी तिथि को हुई हो।

यदि कोई सम्पूर्ण तिथियों पर श्राद्ध करने में सक्षम न हो, तो वो मात्र अमावस्या तिथि पर श्राद्ध (सभी के लिये) कर सकता है। अमावस्या तिथि पर किया गया श्राद्ध, परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिये पर्याप्त है। जिन पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध भी अमावस्या तिथि पर किया जा सकता है। इसीलिये अमावस्या श्राद्ध को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।



साथ ही पूर्णिमा तिथि पर मृत्यु प्राप्त करने वालों के लिये महालय श्राद्ध भी अमावस्या श्राद्ध तिथि पर किया जाता है, न कि भाद्रपद पूर्णिमा पर। हालाँकि, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध पितृ पक्ष से एक दिन पहले पड़ता है, किन्तु यह पितृ पक्ष का भाग नहीं है। सामान्यतः पितृ पक्ष, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध के अगले दिन से आरम्भ होता है।

अमावस्या श्राद्ध को अमावस श्राद्ध के रूप में भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में महालय अमावस्या नवरात्रि उत्सव के आरम्भ का प्रतीक है। देवी दुर्गा के भक्तों का मानना है कि, इस दिन देवी दुर्गा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।


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Difference among various Shraddha types

There are various types of Shraddha. 

Shraddha has five main categories. 

The first 3 categories are described in Matsya Purana. 

However Yama Smriti mentions about 5 categories of Shraddha which are listed below.


Nitya (नित्य) - Shraddha which is done daily is known as Nitya Shraddha. Vishwadeva are not installed during Nitya Shraddha. In necessity or emergency Nitya Shraddha can be performed with water only.


Naimittika (नैमित्तिक) -It is also known as Ekodishta (एकोदिष्ट) because it is done for one person only. When the person dies then Ekodishta Shraddha is performed. Every year on Hindu death anniversary Ekodishta Shraddha is performed. In Hindi Naimittia means special. Naimittika Shraddha is also known as Varshika Shraddha. Vishwadeva are not installed during Naimittika Shraddha. On Bhishma Ashtami people perform Ekodishta Shraddha for Pitamah Bhishma.


Kamya (काम्य) - It is done to fulfil special wishes. It is done during Rohini or Krittika Nakshatra.

Vriddhi (वृद्धि) - During special occasions like marriage or on birth of boy Vriddhi Shraddha is done to get blessings of the ancestors. Vriddhi Shraddha is also known as Nandi Shraddha.


Parvana (पार्वण) - Shraddha which are done during special occasions like Pitru Paksha (i.e. during Mahalaya Paksha) and Bhadrapada Purnima are known as Parvana Shraddha. Vishwadeva are installed during Parvana Shraddha.


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Shraddha Activties
Shraddha rituals consist of following main activities –
Vishwadeva Sthapana (विश्वेदेव स्थापना)
Pindadan (पिण्डदान)
Tarpan (तर्पण)
Feeding the Brahmin (ब्राह्मण भोज)
Pindadan is the offering of rice, cow's milk, Ghee, sugar and honey in form of Pinda (rounded heap of the offering) to the ancestors. Pandadan should be done with whole-heartedness, devotion, sentiments and respect to the deceased soul to fulfil it.
Tarpan is the offering of the water mixed with black sesame (तिल), Barley (जौं), Kusha grass (कुशा) and white flours. It is believed that ancestors are appeased by the process of Tarpan.


Feeding the Brahmin is must to complete the Shraddha ritual. Offering to the crows are also made before food is offered to the Brahmin.

 

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Pitru Paksha Period and Duration


Pitru Paksha is the period of fifteen lunar days when Hindus pay homage to their ancestors, especially through food offerings. Each lunar month is divided into two equal Paksha which are known as Shukla Paksha and Krishna Paksha. Each Paksha consists of fifteen lunar days.
According to North Indian Purnimant Calendar, fifteen days period during Krishna Paksha of Ashwin month is known as Pitru Paksha. But according to South Indian Amavasyant Calendar, fifteen days period during Krishna Paksha of Bhadrapada month is known as Pitru Paksha. It is interesting to note that it is just nomenclature of lunar months which differs and both North Indians and South Indians perform Shraddha rituals on similar days.
Many sources include Bhadrapada Purnima which usually falls one day before Pitru Paksha into fifteen days period of Pitru Paksha. Bhadrapada Purnima which is also known as Proshthapadi Purnima is an auspicious day to perform Shraddha rituals but it is not part of Pitru Paksha. It should be noted that Mahalaya Shraddha for those who died on Purnima Tithi is done on Amavasya Shraddha Tithi during Pitru Paksha and not on Bhadrapada Purnima.

Pitru Paksha starts one or two days after Ganesh Visarjan. Pitru Paksha is also known as Mahalaya
Paksha. The last day of Pitru Paksha is known as Sarvapitri Amavasya or Mahalaya Amavasya. This is the most significant day of Pitru Paksha. If the death date of the deceased person in the family is not known then his or her Shraddha can be performed on Sarvapitri Amavasya.
In West Bengal Mahalaya Amavasya marks the beginning of Durga Puja festivity. It is believed that Goddess Durga was descended on the Earth on this day.
Why Shraddha is done?
According to Garuda Purana, after thirteen days of the death soul starts its journey for Yamapuri and it takes seventeen days to reach there.
The soul travels through Yamapuri for another eleven months and only in twelfth month it reaches to the court of Yamaraj. During the period of eleven months it has no access to the food and the water. It is believed that Pindadan and Tarpan done by the son and family members satisfy the hunger and the thirst of the soul during its journey till it reaches the court of the Yamaraj.



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Days when Shraddha ceremony can be performed

About 96 days in a year are suggested for performing Shraddha. Including Pitru Paksha following days are also appropriate to conduct Shraddha ceremony.
12 Amavasya days (12)
12 Sankranti or Sankramana days (when the sun enters the next Rashi) (24)
15 days of Pitru Paksha (i.e. 15 days of Mahalaya) (39)
12 days of Vaidhriti Yoga (51)
12 days of Vyatipata Yoga (63)
14 Manvadi Tithis or Manvantaras (77)
Purvedyu, Ashtaka and Anvashtaka days (92)
4 Yugadi Days (i.e. Krita, Treta, Dwapar, Kali) (96)


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Apart from following 96 days, following other days are suitable to perform Shraddha rituals
 

7 Kalpadi Tithis
Bhishma Ashtami Day
Varshika Shraddha Day
Auspicious days (e.g. birth anniversary of the son)
When one has enough material to perform the Shraddha
Arrival of any suitable Brahamin
Sampat day
Gajachchhaya Yoga
Surya Grahan and Chandan Grahan
A strong desire to perform the Shraddha


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Jyotishacharya & Vastu Consultant 

Dr Naresh Chowhan

Nagpur India

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होलिका दहन २०२३ मुहूर्तं, Holika Dahan muhurth 2023,


 

1)      घर के प्रत्येक सदस्य को होलिका दहन में देशी घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता अवश्य चढ़ाना चाहिए |

 

2)      होली की अग्नि के 3/5/7/11 परिक्रमा करते हुए होली में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए, इससे सुख-समृद्धि बढ़ती है, कष्ट दूर होते हैं |

 

3)      होली दहन के समय ७ गोमती चक्र लेकर भगवान से प्रार्थना करें कि आपके जीवन में कोई शत्रु बाधा न डालें, प्रार्थना के पश्चात पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ गोमती चक्र दहन में डाल दें |

 

4)      गोमती चक्र को होली के दिन थोड़ा सिंदूर लगाकर शत्रु का नाम उच्चारण करते हुए जलती हुई होली में फेंक दें, आपका शत्रु भी मित्र बन जाएगा |

 

5)      होलिका की राख को घर लाएं और हर कोने में उसके अंश को रखें, ऐसा करने से घर का वास्तु दोष दूर होता है |