कुंडली मिलान क्यों जरुरी है

कुंडली मिलान क्यों जरुरी है - (संक्षिप्त में)
Article by: Dr Naresh Chowhan.



विवाह मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है, हिंदू वैदिक संस्कृति में विवाह से पूर्व जन्म कुंडली मिलान की शास्त्रीय परंपरा है | विवाह पूर्व भावी दंपत्ती की कुंडली मिलान करना आवश्यक है, ताकि विवाहोपरांत वर कन्या अपना गृहस्थ जीवन निर्विघ्न गुजार सकें | 
विवाह तय करने के संबंध में आमतौर पर कई लोग सिर्फ गुण मिलान करके ही निश्चिंत हो जाते हैं, जबकि कुंडली मिलान उससे कहीं अधिक आवश्यक है, इसके अभाव में दांपत्य जीवन को आगे चल कर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है |


वैवाहिक संबंधों की अनुकूलता के परीक्षण के लिए ऋषि-मुनियों ने अनेक ग्रंथ की रचना की, जिनमें वशिष्ठ, नारद, गर्ग आदि की संहिताएं, मुहुर्तमार्तण्ड, मुहुर्तचिंतामणि इत्यादि, जिसमे अष्ट-कूट सर्वाधिक प्रचलित है:-
१) वर्ण से कार्य क्षमता, मानसिक अभिरुचिया, व्यक्तित्व, प्रकृति,
२) वश्य से संबंध, भावनात्मक सामंजस्य, आकर्षण, अधीनता, प्रधानता,
३) तारा से समझने की प्रवृत्ति, भाग्योदय, दोनों की आय व वैवाहिक जीवन में मधुरता या वियोग, भाग्य,
४) योनि से बौद्धिक क्षमता, मानसिकता, स्वभाव गुणदोष, प्रणय संबंध, यौन संबंध में साम्यता व शारीरिक संतोष,
५) राशि से स्वास्थ्य, आपसी विश्वास व सहयोग, परस्पर मित्रता समता या शत्रुता, सामंजस्य,
६) गण से अभिरुचि, कुटुंब के साथ संबंध, प्रकृति की एकरूपता, गुण प्रधानता,
७) भकूट से दिनदैनिक जीवन, दाम्पत्य जीवन में मधुरता, आपसी लेन-देन, प्रेम, एवं
८) नाडी़ से दांपत्य जीवन में स्थिरता, त्रिदोष की साम्यता व संतान सुख में अनुकूलता या बाधा, स्वास्थ्य, आदि
इन अष्टकूट से गुण-दोष अर्थात् आठ प्रकार के दोषों का परिहार देखा जाता है |

इसके आलावा दोनों की कुंडली में निचे दिए गए कुछ योग एवं विषय देखना अति आवश्यक है क्योकि देखा गया है सिर्फ गुण मिलान करके विवाह करने पर, अधिक गुण मिलने पर भी मतभेद अथवा अलग होते देखा गया है |
*पितृ दोष | 
*भाग्य बल |
*दारिद्र योग |
*दशान्तार्दशा |
*तलाक योग |
*आयुष्य योग |
*कालसर्प दोष |
*द्विभार्या योग |
*संतान सुख योग |
*बाल-बालिका दोष |
*लग्न-भाव मिलान |
*वैधव्य या विधुर योग |
*सम-संधि – दशा संधि |
*कुंडली में राज-योग, धन-योग |
*पागलपन के योग, नपुंसक योग |
*राशी नक्षत्र एवं चरण का मिलान |
*अरिष्ट अथवा दुर्घटना या रोग के योग |
*वर और कन्या के बीच में आयु का अंतर |
*वर-वधु की जन्म राशी के नवांश स्वामी का मिलान |
*वधु के नक्षत्र से वर का नक्षत्र दूसरा ना हो | इसके कुछ अपवाद भी है |
*स्त्री-पुरुष दोनों की राशी षडाष्टक ना हो, व अशुभ द्विर्द्वादाश व अशुभ नवपंचम ना हो |
*चरित्र दोष योग, व्यसन योग, व्यभिचार योग, जिससे गृहक्लेश या अलगाव की स्थिति बनती है |
*महानक्षत्र – ७ नक्षत्र महानक्षत्र की श्रेणी में आते है, अगर दोनों के जन्म नक्षत्र इस श्रेणी के है तो मिलान और अधिक शुभ हो जाता है | 
*सास-ससुर से सम्बन्ध- कुंडली में रवि, शुक्र एवं डी-१ व डी-९ चार्ट में महत्वपूर्ण भाव से सम्बन्ध का अवलोकन, डी-३० चार्ट, डी-४ चार्ट |
*लग्न व चन्द्र से मंगल दोष, एक की कुंडली में दोष हो व दुसरे की कुंडली में ना हो तो आयु को खतरा होता है अथवा पति-पत्नी के बीच वाद-विवाद और कलह का कारण भी बनता है, मंगल दोष के अनेक अपवाद भी है जिससे दोष निरस्त हो जाता है | 
*विवाह का शुभ मुहूर्त में होना |
*विवाह काल में त्रिज्येष्ठा व त्रिबल विचार |
*विवाह मुहूर्त में वधु को गुरुबल व वर को रविबल का होना |
इत्यादि विषयों का अवलोकन करना अति आवश्यक है |


इसके अलावा दक्षिण भारतीय विद्वान् कुछ विशेष सूत्रों का भी अवलोकन करते है:-
*द्वितीय भाव का मंगल |
*रज्जू मिलान – यह वैवाहिक जीवन के काल का निर्णय करता है |
*महेंद्र कूट – यह संतान द्वारा भाग्य वृद्धि, और युगल की उन्नति व आयुर्दाय दर्शाता है, परस्पर प्रेम सम्बन्ध, घर-परिवार में सुख-शांति |
*स्त्री दीर्घ कूट – यह सभी प्रकार की समृद्धि और धन-संपत्ति दर्शाता है, सामान्य शुभत्व एवं कुशलता |
*वेध कूट – इसमें कुछ नक्षत्रो के जोड़ो का मिलान निषेध है, पुत्र प्राप्ति |
*तत्व – मैत्री अथवा अमैत्री भाव |
*वर्ग कूट – शत्रु-सम-मित्र वर्ग सम्बंधित |
*दिनम-भाग्य, लिंग, गोत्र, इत्यादि |

कुंडली मिलान में गुण मिलान के अंक कंप्यूटर द्वारा जाना जा सकता है परन्तु उपरोक्त अति महत्वपूर्ण विषयो की विवेचना कर अंतिम निर्णय किसी विद्वान् ज्योतिष द्वारा ही करना महत्वपूर्ण है | 
|| शुभमस्तु ||