शरीर के ७ चक्र
हमारे शरीर में ७ चक्र
होते है, ये ७ चक्र
प्रत्यक्ष रूप से अंतःस्रावी (एन्डोक्राईन) ग्रंथी को जोडकर शरीर की
सभी प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं, ये चक्र भौतिक
शरीर व ब्रम्हांडीय बल तथा आभा मंडलों को जोड़ने वाला
कार्यतंत्र है, और वे शरीर की ऊर्जा प्रवाह को
प्रभावित करते हैं ।
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1) मूलाधार चक्र
मूलाधार चक्र या मूल चक्र ( रूट
चक्र ) यह मानवी शरीर का प्राथमिक चक्रों
में सबसे पहला चक्र है । हालांकि सभी चक्रों के कार्य महत्त्वपूर्ण है, लेकिन अधिकांश का
मानना है कि मूलाधार चक्र
स्वास्थ्य तथा समग्र भलाई के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है । ऐसे माना जाता है कि पिछले जीवन की यादें
तथा कार्यों को इस क्षेत्र में संग्रहित किया जाता है । यह मानव और प्राणीयों की चेतना में
सीमा रेखा बनाती है । यहाँ
प्रत्येक व्यक्ति के भविष्य की नींव तथा व्यक्तित्व विकास की शुरूआत होती है । इस चक्र की वजह से
मनुष्य को चेतना, जीवन शक्ति और संवृध्दि जैसी विशेषताएँ प्राप्त होती है ।
हालांकि इसके अनुचित कार्य की वजह से परिणामतः आलस्य तथा आत्मकेंद्रित प्रवृत्ति आ सकती है
।
प्रतिकात्मक रूप से इसे कमल के साथ चार पंखुडियाँ के रूप में दर्शाया जाता
है जो अचेतन मन की चार भावनाएँ सूचित करती है । इस चक्र का मंत्र है "लं" । मूलाधार चक्र का तत्व अथवा मूल
` धरा ( Earth ) ‘ है और इसका रंग लाल है ।
मूलाधार
चक्र का स्थान -
यह रीढ़ की हड्डी ( स्पाइनल ) के मूल छोर पर स्थित
होता है ।
मूलाधार
चक्र संबंधित अवयव तथा बीमारियाँ -
इस चक्र द्वारा प्रजनन अंगों, प्रतिरक्षा प्रणाली और बड़ी अंतड़ी
इन अवयवों को नियंत्रित किया जाता है ।
अनुचित तरीके से कार्य करनेवाले मूलाधार चक्र की वजह से प्रोस्टेट की
समस्याएँ, मोटापा, गठीया रोग, वेरिकाज़ नसों, पीठ के नीचले भाग की समस्याएँ, कूल्हे की समस्याएँ, घुटनों में सूजन और खाने में अरूचि जैसी समस्याएँ
निर्माण हो सकती है । व्यक्ति की हड्डियों की संरचना कमजोर हो सकती है तथा उनकी
शारीरिक संरचना अशक्त हो सकती है ।
अवरूध्द
तथा असंतुलित मूलाधार चक्र से उत्पन्न होनेवाली समस्याएँ -
- अति सक्रिय मूलाधार चक्र –जिनका मूल चक्र अति सक्रिय होता है तब किसी मामलों में वे छोटे से कारण की वजह से गुस्से में आक्रमक व नाराज़ हो जाते हैं । व्यक्ति दूसरों को दादागिरी करना शुरू कर देता है और उसे वरिष्ठ लोगों का कहना मानने में मुश्किल हो जाती है । जो लोग लालची होते हैं तथा भौतिक सांसारिक चीजों को अधिक महत्त्व देनेवाले होते हैं उनका मूलाधार चक्र अति सक्रिय होता है ।
- असामान्य रूप से सक्रिय मूलाधार चक्र –जिनका मूलाधार चक्र कम सक्रिय होता है वह लोग अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हैं । व्यक्ति अपने आपको स्थिर रखने में असमर्थ हो जाता है और बाहरी दुनिया से खुद को अलग कर देता है । दैनिक कार्य पूरा करने में उनको कठिनाई होती है तथा संगठित रहने में परेशानी हो जाती है । जो लोग अशांत, शर्मिले तथा अति बेचैन होते हैं उनका मूल चक्र असामान्य रूप से निष्क्रिय होता है ।
संतुलित
मूलाधार चक्र के लाभ -
मूल चक्र अन्य सभी प्रमुख तथा छोटे चक्रों को जीवन ऊर्जा वितरित करता
है । जब मूल चक्र संतुलित होता है तब व्यक्ति स्वस्थ होता है तथा संपूर्ण स्वास्थ्य का
अनुभव करता है । वह या वह ( स्री ) शारीरिक रूप से सक्रिय तथा
निश्चयी हो जाते हैं ।
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स्वाधिष्ठान चक्र ( इसे धार्मिक चक्र अथवा उदर चक्र भी कहते हैं ) मानवी
शरीर का दूसरा प्राथमिक चक्र है । ` स्वा ‘ का शाब्दिक अनुवाद स्वयं और ` स्थान ‘ मतलब जगह होता है । स्वाधिष्ठान चक्र वो जगह हैं जहाँ
से मानवी समझ की और मानवी संवर्धन का दूसरा चरण की शुरूआत होती है । ऐसे कहा गया है कि यह
चक्र मन का आवास अथवा अचेतन मन के
लिए घर होता है । गर्भाशय में गर्भधारणा होने के बाद से जीवन के सभी अनुभव तथा यादों का संग्रह
यहाँ किया जाता है । यह चक्र नकारात्मक लक्षणों की जानकारी के बाद उसे नष्ट करके व्यक्तित्व
के विकास को स्पष्ट करता है ।
यह चक्र कमल के साथ छह पंखुड़ियाँ से प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया जाता
है जिसमें हर पंखुड़ी छह नकारात्मक विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती है । स्वाधिष्ठान
चक्र का तत्व जल है और इसका रंग
नारंगी है । इसका मंत्र "वं" है ।
स्वाधिष्ठान
चक्र का स्थान
स्वाधिष्ठान चक्र टेल बोन पर नाभि केंद्र के बीच तथा
रीढ़ की हड्डी के तल में स्थित होता है ।
स्वाधिष्ठान
चक्र से संबंधित अवयव तथा बीमारियाँ -
स्वाधिष्ठान चक्र मुख्य रूप से लैंगिक तथा प्रजनन अंगो के कार्यों को
नियंत्रित करता है । बड़ी अंतड़ी, गुर्दे, रक्त परिसंचरण, शरीर के तरल पदार्थ और स्वाद की
पहचान इन शरीर के अवयव हैं जो स्वाधिनता चक्र के तहत कार्य करते हैं ।
टेस्टोस्टेरॉन तथा एस्ट्रोजन हार्मोन के निर्माण को नियमित करके यह व्यक्ति के
लैंगिक व्यवहार को प्रभावित करता है ।
अवरूध्द तथा असंतुलित स्वाधिष्ठान चक्र की वजह से प्रजनन के मामले, नपुंसकता, मासपेशियों में दर्द, पीठ के नीचले हिस्से में दर्द, एन्डोमेट्रीओसिस, पीसीओएस और उदासी बीमारियाँ हो
सकती है ।
अवरूध्द
तथा असंतुलित स्वाधिष्ठान चक्र की वजह होनेवाली समस्याएँ -
- अति सक्रिय स्वाधिष्ठान चक्र –अति सक्रिय धार्मिक चक्र के साथ कोई भी व्यक्ति सपने देखने के स्वभाव के साथ अत्यधिक भावुक होता है या नाटकीय होता है । व्यक्ति लैंगिक आसक्ति के साथ पीड़ित हो सकता है । विपरित लिंग के लिए लगाव भी असाधारण हो सकता है ।
- असामान्य रूप से सक्रिय स्वाधिष्ठान चक्र –कोई भी व्यक्ति जिसका धार्मिक चक्र असामान्य रूप से निष्क्रिय है वह भावनात्मक रूप से अस्थिर तथा अधिक संवेदनशील होगा । वे अपराधी तथा शर्म की भावना से भरपूर होंगे और खुद को सांसारिक सुखों से त्याग देंगे । वे अपने आपको आम तौर पर भीड़ से दूर रखकर एकांत में रहना पसंद करेंगे ।
संतुलित
स्वाधिष्ठान चक्र के लाभ -
संतुलित दूसरे चक्र वाले लोग रचनात्मक तथा भाववाहक और खुशी को अपने जीवन
में लाने में निश्चित होते हैं । स्वस्थ व समाधानी रिश्ते इन व्यक्तियों से बनती है । व्यक्ति
जिनमें ईमानदारी तथा नैतिकता
होती है और जिनको रिश्तों का मूल्य होता है उनका स्वाधिष्ठान चक्र संतुलित होता है ।
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3) मणिपुर चक्र
मणिपुर चक्र को सौर जाल चक्र तथा नाभि चक्र के रूप में जाना जाता है और
यह मानवी शरीर में तीसरा प्राथमिक चक्र है । ` मणि ‘ का अर्थ ` मोती ‘ है तथा ` पूरा ‘ का मतलब ` शहर ‘ और मणिपुर मतलब है ज्ञान के मोती । ( इसका एक
और मतलब है कि जगमगता रत्न और यह बुध्दि तथा स्वास्थ्य से संबंधित होता है । ) आत्म विश्वास
और आत्म आश्वासन, खुशी, विचारों की स्पष्टता, ज्ञान तथा बुध्दि और योग्य निर्णय
लेने की क्षमता यह रत्न व मोती इस चक्र में
निहित है । यह चक्र चेतना का केंद्रबिंदू माना जाता है जो शरीर के अंदर की ऊर्जा
का संतुलन करता है । यह इच्छाशक्ति
को नियंत्रित करता है और खुद के लिए तथा दूसरों के प्रति सम्मान को मन में बिठा देता है ।
यह कमल के साथ दस पंखुडियों के प्रतिकात्मक रूप में दर्शाया जाता
है जो सूचित करता है कि दस पंखुडियाँ यह दस अत्यावश्यक महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ है जो स्वास्थ्य
को बनाए रखती है तथा उसे मजबूत
बनाती है । मणिपुर चक्र नीचे इशारा करनेवाले त्रिकोण से भी दर्शाया जाता है जो सकारात्मक
ऊर्जा के विस्तार को सूचित करता है । यह अग्नि तत्व तथा पीले रंग से दर्शाया जाता है । पीला
रंग ऊर्जा तथा बुध्दि को सूचित
करता है ।
मणिपुर
चक्र का स्थान
यह चक्र नाभि के केंद्र में पसली के हड्डियों के
पिंजरे के नीचे स्थित होता है ।
मणिपुर
चक्र से संबंधित अवयव तथा बीमारियाँ -
मणिपुर चक्र मुख्य रूप से अग्न्याशय ( पॅन्क्रियाज् ) तथा पाचन क्रिया (
डायजेस्टिव्ह सिस्टिम ) के कार्य पध्दति को संचालित करता है । ( जहाँ पर भोजन ऊर्जा में बदल
जाता है ) । यह पेट, यकृत ( लिवर ), बड़ी अंतड़ी को नियंत्रित करता है
।
मणिपुर चक्र के असंतुलित होने की वजह से पाचन संबंधी विकार, अजीर्ण, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हायपोग्लासीमिया ( अल्पशर्करारक्तता ), अल्सर, संचार रोग और खाद्य उत्तेजकों का
व्यसन जैसी शारीरिक बिमारियों का कारण होता है
। थकान अथवा अधिक सक्रिय होना और शांत व डरपोक अथवा आक्रमक स्वभाव होना जैसे भावनात्मक मामलें
भी हैं ।
अवरूध्द
तथा असंतुलित मणिपुर चक्र की वजह से समस्याएँ -
- अति सक्रिय मणिपुर चक्र –जिनका तीसरी दृष्टि चक्र अति सक्रिय होता है वे आक्रमक तथा श्रेष्ठतर प्रवृत्ति के तथा अधिक ऊर्जावान होते हैं जिसे हमेशा नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है । उनका स्वभाव आलोचनात्मक और अनिश्चित व तेज़-मिज़ाज़ हो सकता है । प्रबंधकर्ता अति सक्रिय चक्र के होंगे तो वे हमेशा काम में डूबे रहेंगे और कर्मचारियों पर डराने धमकाने के माध्यम से शासन करते हैं।
- असामान्य रूप से सक्रिय मणिपुर चक्र –इन लोगों को आत्म विश्वास, आत्म सम्मान की कमी होती है तथा इनके भावनात्मक मामलें होते हैं । इनका स्वभाव डरपोक तथा भयभीत व अशांत होता है और उनको असफल होने का डर रहता है इसलिए हर मामलों में दूसरों की मंजूरी लेते हैं । कोई भी निर्णय लेने से वे संकोच करते हैं और उनको असुरक्षा की भावना होती है ।
संतुलित
मणिपुर चक्र के लाभ -
संतुलित मणिपुर चक्र के साथ व्यक्ति मजबूत तथा आत्मविश्वासपूर्ण होता
है और यहां तक कि अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर आता है । इस
व्यक्ति खुद को तथा दूसरों को
प्यार करता है तथा उनका सम्मान करता है और उनमें अच्छे नेतृत्व गुण होते हैं ।
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4) अनाहत चक्र
अनाहत चक्र ( मतलब अजेय अथवा खुला ) या हृदय चक्र यह मानवी शरीर का 4 था मुख्य चक्र होता है । दूसरों के
साथ आपस में बाँटे हुए गहरे रिश्ते और बिना
शर्त प्यार की स्थिति को नियंत्रित करता है । चूँकि प्यार एक उपचारात्मक शक्ति है, यह चक्र भी चिकित्सा का केंद्र माना जाता है । परोपकारिता, खुद के लिए तथा दूसरों के लिए
प्यार, क्षमा, अनुकम्पा तथा सुख यह संतुलित अथवा
खुले अनाहत चक्र की गहरी विशेषताएँ है । इसमें इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति है और अगर चक्र
को सही प्रकार से संतुलित और शुध्द है तो मनोकामनाएँ
जल्दी से पूरी हो जाती है ।
यह चक्र कमल के साथ 12 पंखुडियाँ ( दिल की बारह दिव्य गुणों को सूचित करता है
) के साथ प्रतीकात्मक दर्शाया जाता है । इसका मंत्र "यं" है तथा रंग
हरा है ।
अनाहत
चक्र का स्थान
छाती के मध्य में ( या दो स्तनों के बीच में ) यह
चक्र स्थित होता है ।
अनाहत
चक्र के साथ जुड़े हुए अवयव तथा बीमारियाँ -
यह चक्र मुख्य रूप से दिल तथा फेफड़ों के कार्य को नियंत्रित करता है ।
यह त्वचा, भूजाएँ, रक्ताभिसरण प्रणाली, प्रतिरक्षा प्रणाली और बाल्य
ग्रन्थि ( थायमस ग्लॅण्ड ) को नियंत्रित करता है ।
दिल का जोरसे धडकना, रूक जाना तथा उच्च / निम्न रक्तचाप जैसे हृदय से
संबंधित विकार और फेफड़ों का तथा स्तन कैन्सर यह बंद अनाहत चक्र की प्रत्यक्ष
अभिव्यक्ति है । एलर्जीज्, बुखार, अस्थमा, क्षय ( टीबी ) और छाती में रक्त
संचय होना यह कुछ और अनाहत चक्र के काम न करने से होनेवाली बीमारियाँ है ।
अनाहत
चक्र के बंद होने से या असंतुलन से होनेवाली समस्याएँ -
- अति सक्रिय अनाहत चक्र –जब यह चक्र अति सक्रिय होता है तब व्यक्ति भावनाओं ( जैसे गुस्सा, उदासी, ईर्ष्या, खुशी आदि सहित ) से बेकाबू होने को अनुभव करता है । प्यार सशर्त हो जाता है और पाने या हावी होने की तीव्र इच्छा को पहुँचता है । रिश्ता कब आखरी मोड़ पर पहुँच गया इसे समझने में लोग असमर्थ हो जाते हैं या वो अपमानजनक संबंध के साथ रहने लगते हैं।
- असामान्य रूप से सक्रिय अनाहत चक्र –जब यह चक्र असमान्य रूप से सक्रिय तथा पूर्ण निष्क्रिय हो जाता है तब व्यक्ति अपने अंदर प्यार को आने से रोक देता है परिणामस्वरूप आत्म घृणा और दया तथा अनुपयुक्तता की भावनाओं को महसूस करता है । लोग हर चीज के बारे में अनुमान बनाते हैं ( आलोचनात्मक हो जाते हैं ) और अपनी असफताओं के लिए दूसरों को दोष देतें हैं ।
संतुलित
अनाहत चक्र के फायदे -
संतुलित अनाहत चक्र से व्यक्ति बिनशर्त प्यार करता है और वास्तविक करूणा
तथा आत्म स्वीकृति दिखाता है जो उन्हें दूसरों को प्यार करने तथा स्वीकार करने की सक्षम
बनाता है । ऐसे लोग स्वभाव से परोपकारी होते हैं । निष्कपट तथा शुध्द अनाहत चक्र
से व्यक्ति वास्तव में केवल कामक्रीडा के माध्यम से
आध्यात्मिकता का अनुभव करता है ।
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5) विशुद्ध चक्र
विशुध्द चक्र ( इसे विशुध्दी चक्र अथवा कंठ चक्र भी कहा जाता है ) । मानवी
शरीर का पाँचवा प्राथमिक चक्र है । विशुध्द चक्र यह संस्कृत शब्द है जिसका मतलब है शुध्द
करना अथवा प्रक्षालन करना और यह
चक्र प्रक्षालन न केवल शारीरिक स्तर पर लेकिन रूह तथा मन के स्तर पर भी दर्शाता है । आत्मा से
सत्य को व्यक्त करना यही इसका मुख्य हेतु है । यह चक्र संचारण तथा वक्तृत्व का केंद्र है और
श्रवण शक्ति तथा सुनने की शक्ति को
नियंत्रित करता है । यह व्यक्ति को संवाद करने का तथा चुनने का अधिकार देता है ।
यह चक्र कमल के साथ सोलह पंखुड़ियाँ से प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया जाता
है जिसमें हर पंखुड़ी सोलह विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती है जिसे व्यक्ति संभवतः महारत
हासिल कर सकता है । ( सोलह पंखुड़ियाँ संस्कृत के सोलह स्वरों का प्रतिनिधित्व
करते हैं ) । इसका मंत्र ` हम ‘ है और इसका रंग निला है ।
विशुध्द
चक्र का स्थान
विशुध्द चक्र गले की ओर खुलता है और तिसरे तथा पाँचवे
गर्दन के रीड़ के जोड़ ( व्हटिब्रे ) में स्थित होता है ।
विशुध्द
चक्र से संबंधित अवयव तथा बीमारियाँ -
विशुध्द चक्र मुख्य रूप से मुँह, दाँत, जबड़े, गला, गर्दन, भोजन नलिका, थायरॉइड ग्रंथी और रीढ़ की हड्डी के कार्यों को नियंत्रित करता है ।
पीड़ादायक गला, कान में इन्फेक्शन, पीठ तथा गर्दन में दर्द, थायरॉईड के विकार और दाँत तथा मसूढ़ों की तकलीफें यह इस चक्र की वजह से आनेवाली कुछ
शारीरिक समस्याएँ हैं । कमजोर संवाद, दुर्बल श्रोता, बातों में हकलाहट होना, कमजोर आवाज़ और वर्चस्व दिखाकर से बातें यह समस्याएँ निष्क्रिय कंठ चक्र की
वजह से आनेवाली मानसिक तथा भावनिक कठिनाईयाँ हैं ।
अवरूध्द
तथा असंतुलित विशुध्द चक्र की वजह होनेवाली समस्याएँ -
- अति सक्रिय विशुध्द चक्र –अति सक्रिय विशुध्द चक्र की वजह से व्यक्ति बातें करते वक्त चिल्लाता है तथा उनको बोलने तथा उनका सुने बिना ही दूसरों पर अधिकारवाणी से बातचीत करता है । उनका आवाज ऊँचे स्वर में तथा कर्णवेधी होती है और वे आलोचनात्मक हो जाते हैं तथा चीजों का अतिविश्लेषण करतें हैं ।
- असामान्य रूप से सक्रिय विशुध्द चक्र –जो व्यक्ति धीरे-धीरे बातें कर है, डरकर बातें करता है अथवा हकलाता है उसका कंठ चक्र असामान्य रूप से निष्क्रिय होता है । ऐसे लोगों को बातचीत की शुरूआत करने में कठिनाई होती है तथा बोलते समय उचित शब्दों का उपयोग करने में मुश्किल होती है ।
संतुलित
विशुध्द चक्र के लाभ -
संतुलित विशुध्द चक्र वाले लोगों का आवाज सुस्पष्ट
तथा अनुकंपन ( रेजोनन्स ) के साथ, साफसुथरी
तथा लय में होती है ।
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6) आज्ञा चक्र
अजना चक्र को तिसरी आँख चक्र अथवा भृकुटि चक्र कहा जाता है जो मानवी
शरीर का छठा प्राथमिक चक्र है । इसे अंतरस्थ दृष्टी चक्र अथवा छठवाँ चक्र भी कहा जाता है
। यह ज्ञान के द्वार खोलकर स्वयं
की वास्तविकता को अनुभव करने में मदद करता है इसलिए इसे तिसरी आँख चक्र कहा जाता है ।
प्रतीकात्मक दृष्टी से कमल के साथ दो पंखुडियाँ के रूप में इसे दर्शाया
जाता है और यह मानवी चेतना ( धारणा, स्पष्टता और ज्ञान ) और परमात्मा के बीच की विभाजन
रेखा है । इस चक्र के द्वारा
प्रदान होनेवाली ऊर्जा से स्पष्ट विचार, आत्म चिंतन तथा आध्यात्मिक जागरूकता की अनुमति प्राप्त होती
है और उसका मंत्र "ॐ" है ।
अजना
चक्र का स्थानं
अजना चक्र दो भृकुटि के बीच में तथा नाक के पुल के थोडासा उपर स्थि
होता है । यह आँखों के पीछे तथा सिर के मध्य में स्थित होता है । परंपरागत तौर
पर, महिलाएँ बिंदी लगाती है और पुरूषों के माथे पर तिलक लगता है वहाँ पर
यह चक्र सक्रिय होता है अथवा चक्र का प्रतीक होता है ।
अजना
चक्र के साथ जुड़ी हुए अवयव तथा बीमारियाँ -
अजना चक्र द्वारा मुख्यतः आँखे, कान, नाक, मस्तिष्क और
तन्त्रिका तन्त्र ( नर्व्हस सिस्टिम ) अवयव नियन्त्रित किए जाते हैं । पीयुषिका ग्रंथी (
पिट्युटरी ग्रंथी ) व शीर्ष ग्रंथी ( पीनियल ग्रंथी ) भी इस चक्र के द्वारा नियन्त्रित की
जाती है ।
असंतुलित अजना चक्र की वजह से जुड़े हुए कुछ शारीरिक समस्याओं में अक्सर
सिरदर्द, साइनस और दृष्टि संबंधी जैसी समस्याएँ शामिल हैं । जिद्दी होना, अत्याधिक गुस्सा आना तथा बुरे सपने
आना जैसे अन्य मामले भी इसमें शामिल
हैं ।
अवरूध्द
तथा असंतुलित अजना चक्र की वजह से उत्पन्न होनेवाली समस्याएँ -
- अति सक्रिय अजना चक्र –अति सक्रिय अजना चक्र की वजह से अतिसक्रिय कल्पना शक्ति, वास्तविकता से दूर होना जैसे परिणाम प्राप्त होते हैं । जिस व्यक्ति का अजना चक्र अति सक्रिय होता है वह काल्पनिक दुनिया में रहता है और अक्सर बुरे सपनों से परेशान रहते हैं । व्यक्तियों को घटनाओं को याद रखने में परेशानी होती है और उनकी सख्त मानसिकता ( पूर्वग्रह ) होती है । ऐसे लोग आसानी से विचलित हो जाते हैं, चिंता से प्रभावित होते हैं तथा उनकी प्रवृत्ति आलोचनात्मक तथा सहानुभूतिहीन होती है ।
- असामान्य रूप से सक्रिय अजना चक्र –असमान्य रूप से सक्रिय अथवा असक्रिय अजना चक्र के व्यक्तियों की स्मृति कमजोर होती है, उन्हें समस्याओं को सीखने में परेशानी होती है व चीजों की कल्पना तथा अनुमान करने के लिए मुश्कील होता है । उनमें / उनमें ( स्री ) सहज ज्ञान का अभाव होता है व दूसरों के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं तथा हमेशा खंडन करने के आचरण में रहते हैं । कुछ मामलों में अप्रिय यादों से बचने के लिए लोग इस चक्र को बंद कर देतें हैं ।
संतुलित
अजना चक्र के फायदें -
जिनका अजना चक्र संतुलित होता है वे आकर्षक व्यक्तित्व के तथा
अंतर्ज्ञानी होते हैं । उनके शांतचित्त के द्वारा उनको चीजें स्पष्ट दिखाई देतीं हैं
तथा दूसरों को आलोचनात्मक हुए बिना स्वीकार करतें हैं । जब तृतीय दृष्टि चक्र संतुलित
होता है तब लोगों को अपने सपनों
को याद करने में तथा उनका विवरण करने में आसानी होती है और उनकी स्मरणशक्ति अच्छी होती है ।
7) सहस्त्रार चक्र
सहस्र चक्र का मतलब है हजारो पंखुड़ियाँवाला कमल का फूल और इसे 7 वाँ चक्र ब्रह्मरंध्र ( भगवान का
द्वार ), शून्य, निरलंबापूरी और हजारों किरणों का
केंद्र ( जैसे की वह सूरज जैसे चमकता होता है ) तथा शीर्ष चक्र ( क्राऊन चक्र ) भी
कहा जाता है । सहस्र चक्र दुनिया
तथा स्वयं की पूरी जागरूकता के साथ व्यक्ति की बुध्दि और परमात्मा से आध्यात्मिक मिलाप का
प्रतिनिधित्व करता है । इसे कोई विशिष्ट रंग से संबंधित नहीं है, यह एक निर्मल शुध्द प्रकाश है जो
बाकी रंगों को समा लेता है ।
सहस्र
चक्र का स्थान
सहस्र चक्र सिर के उपर, चार उँगलियाँ जितनी चौड़ाई से उपर शीर्ष स्थान में तथा कानों के
बीच की रेखा पर स्थित हैं । यह
मुकुट जैसा स्थित होता है जो उपर की तरफ से किरणों को फैलाता है और इसलिए इसे मुकुट चक्र अथवा शीर्ष
चक्र कहा जाता है । इस चक्र के स्थान के अनुसार इसका सहसंबंध प्रथम चक्र या मूल चक्र के
साथ होता है जो चक्र के चार्ट में
दोनों भी अंतिम छोर पर स्थित हैं ।
सहस्र
चक्र के साथ जुड़े हुए अवयव तथा बीमारियाँ -
सहस्र चक्र मुख्य रूप से मस्तिष्क तथा त्वचा के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन
यह आँखे, कान, शीर्ष ग्रंथी ( पिनिअल ग्लॅण्ड – जो आवश्यक हार्मोन्स स्रावित करती
है ) और मांसपेशीयों तथा अस्थी प्रणाली को भी प्रभावित करता है ।
अवरूध्द सहस्र चक्र की वजह से मानसिक तथा भावनिक मामलें जैसे सिर दर्द, वृध्दावस्था, उदासी, मनोभ्रंश तथा तंत्रिका ( न्यूरोलॉजिकल ) संबंधी समस्याएँ
आती हैं । अन्य संबंधित बीमारियों में मल्टिपल स्क्लेरोसिस ( मस्तिष्क और मेरूरज्जू की
विकृति ), अल्जाइमर, पक्षाघात, पार्किन्संस रोग, मिर्गी आदि शामील हैं ।
अवरूध्द
तथा असंतुलित सहस्र चक्र से उत्पन्न होनेवाली समस्याएँ -
- अति सक्रिय सहस्र चक्र –जब यह चक्र अति सक्रिय अथवा अति क्रियाशील हो जाता है तब व्यक्ति को सनकी विचार आते हैं तथा वह / वह अतीत में जीना चालू करते हैं और भविष्य की चिंता करते हैं । अति सक्रिय सहस्र चक्र के लोग आध्यात्मिकता के लिए जादा ही आसक्त हो जाते हैं जिससे व्यक्ति अपनी आवश्यक कर्तव्यों की उपेक्षा करता है । अति सक्रिय सहस्र चक्र से मन में स्वार्थी विचार आते हैं परिणामस्वरूप नैतिकता तथा आचार-विचारों में कमी होती है । यह ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह लोग सर्वोच्च शक्ति से मार्गदर्शन का अनुभव करने में असमर्थ होते हैं तथा अपने आपको इसके लिए अपात्र समझते हैं ।
- असामान्य रूप से सक्रिय सहस्र चक्र –जो व्यक्ति का सहस्र चक्र संतुलित होता है उसका व्यक्तित्व आकर्षक होता है तथा उसे आंतरिक शांती प्राप्त होती है । वह या वह ( स्री ) लगातार अपनी आत्म जागरूकता को ज्ञान से जुड़े हुए विश्वास के साथ बदलकर विकसित करते हैं ।
संतुलित
सहस्र चक्र के लाभ -
जो व्यक्ति का सहस्र चक्र संतुलित होता है उसका व्यक्तित्व आकर्षक होता है
तथा उसे आंतरिक शांती प्राप्त होती है । वह या वह ( स्री ) लगातार अपनी आत्म जागरूकता को
ज्ञान से जुड़े हुए विश्वास के
साथ बदलकर विकसित करते हैं ।
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