राशी का घातचक्र / Rashi Ghaat Chakra






राशी का घातचक्र

 

(घात अर्थात् दर्दनाक, दर्द देने वाला, मारना)


निचे दी गई तालिका में अपनी जन्म राशी अनुसार दिए गए घातमास, घाततिथि, घातवार, घातनक्षत्र, घातयोग, घातकरण, घातप्रहार, घातचन्द्र, इन काल में कोई भी नया अथवा शुभ कार्य शुरू करना, अथवा प्रवास, सरकारी काम, मुलाकात, युद्ध, विवाद, राजदर्शन, रोगपरिहारार्थ किये जाने वाले उपाय, कुमारिपुजन, राजसेवा, वाहन का उपयोग करने की शुरुवात, शास्त्र सम्बन्धी कार्य, नौकरी, अथवा पदभार संभालना, इत्यादि वर्ज्य है, (नहीं करना चाहिए) |


 (नोट: विवाह, उपनयन, मंगलकार्य, यज्ञ, तीर्थयात्रा, में इसका वर्ज्य करने की आवश्यकता नहीं)


जैसे आप की जन्म राशी “मेष” है, और आप रविवार को कोई शुभ कार्य शुरू करने का सोच रहे है, परन्तु रविवार “मेष” राशी वाले के लिए घातवार है, इसलिए रविवार को शुरू करने का विचार त्याग कर पंचांग शुद्धि के बाद अन्य कोई वार चुने | इसी तरह देखे अन्य घात- मास, तिथि, नक्षत्र, योग, प्रहर, चन्द्र इनमे से कोई हो तो उनका त्याग करे |


(नोट: अगर पहले से कोई कार्य शुरू है तो जारी रखने के लिए घातचक्र देखने की जरुरत नहीं)


 राशी घातचक्र 




सोने, चांदी के आभूषण पहनना कितना शुभ या अशुभ




सोने, चांदी के आभूषण पहनना कितना शुभ या अशुभ




ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों और धातुओं का सीधा व घनिष्ठ संबंध माना गया है| सूर्य-सोने और तांबे पर, शुक्र व चंद्रमा-चांदी, मंगल-तांबे, गुरु-सोने और शनि व राहू-लोहे पर आधिपत्य रखते हैं| ग्रहों की तरह धातुओं की भी अपनी एक प्रकृति होती है| स्वर्ण के आभूषणों की तासीर गर्म और चांदी की शीतल है|



प्राचीन काल में राजा-महाराजा धातु लाभ लेने के लिए लोहे-तांबे के पात्रों में खाना बनवाते थे| सोने-चांदी के बर्तनों में खाना खाते थे, ताकि उनके शरीर मे धातु तत्व पहुंचते रहें और ग्रह उनके अनुकूल रहें, प्रत्येक धातु से एक विशेष धारा ऊर्जा ओर तरंगे प्रवाहित होती है|


ज्योतिष में सूर्य-ह्रदय, मुंह, गला व सिर का, चंद्रमा-वक्ष, पेट, मंगल-भुजा और शनि-पैरों का प्रतिनिधित्व करता है| कह सकते हैं कि आभूषण के उपयोग से भी ग्रहों को अनुकूल बनाने में खासी भूमिका निभा सकते हैं| आभूषण रत्न जडि़त हो तो ग्रह पीड़ा, नजर और दु:स्वप्न का नाश होता है|



जो महिलाएं केवल स्वर्णाभूषण पहनती हैं, उनमें उष्णता धारा अधिक होती है| वे स्थाई रूप से रोगिणी हो सकती हैं. केवल सोना पहनने से पित्त की अधिकता होगी|



ज्योतिष में पैर-शनि का और सूर्य-सिर का प्रतीक है और ये परस्पर शत्रु माने जाते हैं| आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य का सिर ठंडा और पैर गर्म रहने चाहिए, इसलिए सिर पर सोना और पैरों में चांदी के आभूषण ही धारण करने चाहिए| आदिकाल में  राजा-महाराजा शायद इसी लिए सुवर्ण मुकुट धरण करते थे| इससे सिर से उत्पन्न ऊर्जा पैरों में और चांदी से उत्पन्न ठंडक सिर में जाएगी, इससे सिर ठंडा व पैर गर्म रहेंगे, सिर में चांदी के व पैरों में सोने के आभूषण नहीं पहनने चाहिए, इससे स्त्रियां अवसाद, पागलपन या अन्य रोगों की शिकार बन सकती हैं|


पैरों में सोने की पायल नहीं पहननी चाहिए, चांदी की पायल पहनने से पीठ, एड़ी व घुटनों के दर्द, रक्तशुद्धि, मूत्ररोग, हिस्टीरिया आदि रोगों से राहत मिलती है|



सिर और पांव दोनों में स्वर्णाभूषण पहनने से मस्तिष्क और पैरों में समान गर्म ऊर्जा प्रवाहित होगी, जिससे जातक रोगग्रस्त हो सकता है. यही नहीं आभूषणों में अन्य धातु के टांके से भी धारा गड़बड़ा जाती है लेकिन टांके में अन्य धातु का मेल आवश्यक है लेकिन इसमें जिस धातु का गहना है, उसका मिश्रण अधिक हो तो रोग रहित होंगे|


ऊर्जा प्रवाह की गड़बड़ में परिणाम विपरीत होता है. यदि सोने में चांदी की मिलावट हो तो गर्म व ठंडे का मिश्रण से अन्य प्रकार की धारा बन सकती है| अत: सोने के पतरे का खोल बनवा कर भीतर चांदी, या जस्ते की धातुएं भरवा कर कड़े, हंसली आदि आभूषण से रोग पैदा होते हैं, ऊर्जा का प्रवाह हमेशा किनारों से प्रवेश होता है. अत: मस्तिष्क के दोनों भागों को ऊर्जा प्रभाव से प्रभावशाली बनाने के लिए नाक और कान में सोना पहनना चाहिए| सोने की बालियां या झुमके पहनने से स्त्रियों में स्त्री रोग, मासिक धर्म संबंधी अनियमितता, कान के रोग, हिस्टीरिया, डिप्रेशन में लाभ होता है|



·         यदि आपका लग्न मेष, कर्क, सिंह और धनु है तो आपके लिए सोना धारण करना उत्तम होगा।


·         वृश्‍चिक और मीन लग्न के लोगों के लिए मध्यम और वृषभ, मिथुन, कन्या और कुंभ लग्न के लिए उत्तम नहीं होता है।


·         तुला और मकर लग्न के लोगों को सोना कम से कम पहनना चाहिए। जहां और जब जरूरत हो तब ही पहनना चाहिए।


·         सोना नकारात्मक असर भी देता है, जब तुला, मकर लग्न वाले पहनते है, इन लग्न वाले सोना पहनने से कर्ज और बीमारी के चक्कर मे फंस जाते है।


·         कुंडली मे जब गुरु राहू की स्थिति खराब हो तो ये देख कर ही सोना धारण करावे की गुरु किस राशि का स्वामी है, कभी कभी राहु भी जीवन मे सकारात्मक प्रभाव देता है, ऐसी स्थिति मे गुरु याने सोना पहनाना उचित नही होगा । जैसे एक नेता याने राजनितिक व्यक्ति को राहू की ज्यादा जरूरत होती है ।


·         जिन लोगो को बार बार पीलिया होता है, उनका गुरु ग्रह खराब होता है, ऐसे लोग सोच समझकर सोना धारण करे ।


·         जब सन्तान आपकी बात नही सुन रही तो दूध उबालते समय उसमे सोने का कोई तार डालकर उबाले,जल्दी शुभ असर होगा ।


·         विवाह के कई साल बाद भी यदि किसी के संतान नहीं हो रही है तो उसे अनामिका ऊंगली में सोने की अंगूठी पहनने से लाभ होता है।
·         जो लोग स्वयं को अन्य लोगों से कमतर महसूस करते हों या फिर उनमें हीन भावना घर कर चुकी हो, ऐसे में उन्हें तर्जनी उंगली में सोने का आभूषण धारण करना चाहिए |


·         एकाग्रता बढ़ाने के लिए तर्जनी यानि इंडैक्‍स फिंगर में सोने की अंगूठी पहनने से आपको फायदा होगा।


·         घर में सोना रखना है तो उसे ईशान या नैऋत्‍य कोण में ही रखें और ध्‍यान रहे इसे हमेशा लाल कपड़े में बांधकर ही रखें।


·         यदि किसी व्‍यक्‍ति को सम्‍मान या राजकीय अधिकारियों से सहयोग प्राप्‍त करना है तो उसे सोना अवश्‍य धारण करना चाहिए।


·         दांपत्‍य अथवा वैवाहिक जीवन में खुशियां लाने के लिए गले में सोने की चेन पहनें।


·         सर्दी जुकाम या साँस की बीमारी हो तो रिंग फिंगर में सोना पहने| सोना ऊर्जा और गर्मी दोनों ही पैदा करता है| साथ ही, ये विष के प्रभाव को दूर भी करता है|


·         जिन माँ के बच्चे उनकी बाते नही मानते उन्हें भी सोना पहनने से बच्चे उनकी बात सुनने लगते है।


·         जब आपको लगता है की आपका बेटा, बेटी अपने रास्ते से भटक रहे है तो उन्हें सोना पहनाना शुभ होगा।


·         यदि आप दुबले हो और सभी उपाय करने के बाद भी वजन नही बढ़ पा रहा तो सोना पहनना आपके वजन को बढ़ा सकता है।

·         जो लोग अनुशासनहीन है उन्हें सोना पहनना चाहिये ।


·         गुरुजन याने टीचर को अपना व्यक्तित्व बढ़ाने के लिये सोना पहनना शुभकारी होगा |


·         सोने की बालियां या झुमके न पहनने से स्त्रियों में स्त्री रोग, कान के रोग, डिप्रेशन, व हीन भावना होने की संभावना अधिक बढ़ने की संभावना होती है ।


·         हाथ में सोने, चांदी या तांबे की धातु धारण करने से हाथ-पैरों का दर्द जाता रहता है। मानसिक, व ह्रदय संबंधी रोगो से बचा जा सकता है व यश, मान-सम्मान व निर्णेय क्षमता बढती है ।


·         जिन्हें समय पर यश, मान-सम्मान नहीं मिले या ह्रदय संबंधी रोग हों, ऐसे जातकों को अनामिका में सोने या तांबे की धातु धारण करनी चाहिए |


·         जो कोई भी मध्यमा अंगुली में लोहे या काले घोड़े की नाल की अंगूठी पहनता है तो ऐसे जातक को रोग, नजर, तांत्रिक अभिकर्म में लाभ मिलता है | 


·         जिनका मोटापा अधिक है या वजन बढ़ रहा हो ऐसे जातकों को मध्यमा में रांगे की अंगूठी धारण करनी चाहिए |


·         जिन जातकों के हाथ-पैरों में दर्द रहता है, वे हाथ में सोने या चांदी का कड़ा धारण करें इससे लाभ होगा | 


·         जो जातक निम्न रक्तचाप से परेशान रहते हों, उन्हें भुजा पर तांबे का कड़ा धारण करना चाहिए |


·         जिन जातकों के कमर या पेट के रोग हों, वे कमर में सोने, तांबे या चांदी की कनकती धारण करें, लाभ मिलता है |


·         धातु ग्रह-क्लेश को भी नियंत्रित कर सकता है. जो जातक दाम्पत्य कलह के शिकार हों, उन्हें चांदी की चेन या अंगूठी धारण करनी चाहिए |


·         जो व्यक्ति मानसिक अशांति के कारण अवसाद में हों वे चांदी, तांबा, स्वर्ण धातु से निर्मित छल्ला पहनें तो लाभ मिलेगा |


·         जातक चंद्र पीडि़त है या मानसिक कष्ट, कफ, फेफड़े का रोग, तन से परेशान हो तो नाक में चांदी का छल्ला डालना लाभ देता है |


·         बच्चों को टोटकों से बचाने या दांत आसानी से निकलने के लिए हाथ-पैर में लोहे या तांबे का छल्ला, गले में चंद्र्रमा या सूरज बना कर पहनाने चाहिएं |


·         जो जातक मूत्र रोग से पीडि़त हों वे रेशम का सफेद धागा या चांदी का कड़ा बाएं पैर के अंगूठे में बांधें तो लाभ मिलेगा |


·         जिन स्त्रियों के स्नायु तंत्र, गला व कंठ संबंधी रोग हो, वे हाथ के अंगूठे में छल्ला पहनें तो शीघ्र लाभ मिलने लगता है |

·         विश्व के पहले शल्य चिकित्सक सुश्रुत के अनुसार यदि कानों में छिद्र करके सोने या जस्ते की बालियां पहन ली जाय तो आंत उतरने, पसली का रोग लगने की संभावना नहीं रहती |


·         हंसुली को गले में पहनने से नेत्र ज्योति बनी रहती है, इससे गलगण्ड रोग भी नहीं होता अंगूठी धारण करने से मानसिक तनाव कम हो जाता है |


·         सोना मिलना और गुमना दोनों अशुभ होता है ।


·         अक्सर लोग सोना तिजोरी में, अलमारी में या लॉकर में रखते हैं। सोना जहां भी रखे उसे लाल कपड़े में बांधकर रखे। इससे बृहस्पति को मंगल की सहायता मिलने लगेगी और आपकी समृद्धि बढ़ती जाएगी।


·         सोना घर के ईशान या नैऋत्य कोण में रखेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा।


·         सोने के साथ नकली आभूषण या लौहा न रखें। कुछ लोग सिक्के रख देते हैं तो यह भी उचित नहीं। ऐसा करने से बृहस्पति अशुभ होकर अपना शुभ प्रभाव देना छोड़ देता है।


·         सोने को सोते वक्त सिरहाने न रखें। बहुत से लोग अपनी अंगुठी या चैन निकालकर तकिये के नीचे रख देते हैं। इससे नींद संबंधी समस्या तो होगी ही साथ अन्य समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती है।


आभूषणों का प्रयोग आदिकाल से पूरे संसार में होता आ रहा है, व समय-समय पर आभूषणों का रंग-रूप, आकार-प्रकार बदलते रहे है, परन्तु इसकी चाह, आकर्षण, उपयोगिता, व महत्व में कमी नहीं हुई है |


(विशेष: यहाँ कैसे जाने की कोई भी धातु या रत्न आप ने पहना है या पहनने की इच्छा रखते है वह आपके लिए अनुकूल है  या नहीं, या आप के शरीर की आवृति (Frequency) से मेल हो रही है या नहीं | इसको जांचने का एक तरीका है आप की जन्म कुंडली में स्थित ग्रह, नक्षत्र, योग, राशी की शुभाशुभ स्थिति से | परन्तु इससे भी अधिक सटीकता से व वैज्ञानिक तरीके से इसे “यूनिवर्सल थर्मो औरा स्कैनर” मशीन से जांचा जा सकता है, जो की एक D.N.A Based मशीन है | )

जाँच व अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे |



Posted By

Dr Naresh Chowhan




संवत्सर के नाम व फल

 

संवत्सर के नाम व फल

भारतीय संस्कृति में चन्द्र वर्ष (lunar Year) का प्रयोग किया जाता है | चन्द्र वर्ष को ही संवत्सर कहा जाता है | संवत्सर ऋतुओं के एक पूरे एक चक्र का होता है |
ब्रह्माजी  ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से किया था अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है | हिंदू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है |

२०१७ /२०१८ इस वर्ष का संवत्सर है "हेम्लंबी"

संवत्सर का नाम
वर्ष फल
फल
1.
प्रभव
प्रजा में यज्ञादि शुभ कार्यों की  भावना हो|
2.
विभव
प्रजा में सुख समृद्धि हो |
3.
शुक्ल
विश्व में धान्य प्रचुर मात्रा  में हो |
4.
प्रमोद
प्रजा में आमोद प्रमोद ,सुख वैभव की  वृद्धि हो
5.
प्रजापति
विश्व में चतुर्विध उन्नति हो
6.
अंगिरा
भोग विलास की  वृद्धि हो
7.
श्री मुख
जनसँख्या में अधिक वृद्धि हो
8.
भाव
प्राणियों में सद्भावना बढे
9.
युवा
मेघों द्वारा प्रचुर वृष्टि हो
10.
धाता
विश्व में समस्त औषधियों की  वृद्धि हो
11.
ईश्वर
आरोग्य व क्षेम की  प्राप्ति हो
12.
बहुधान्य
अन्न की  प्रचुरता हो
13.
प्रमाथी
शुभाशुभ प्रकार का मध्यम वर्ष हो
14.
विक्रम
अन्न की  अधिकता रहे
15.
वृष
प्रजा जनों का पोषण हो
16.
चित्रभानु
विचित्र घटनाएं हों
17.
सुभानु
आरोग्यकारक व कल्याणकारी वर्ष हो
18.
तारण
मेघों द्वारा शुभकारक वर्षा हो
19.
पार्थिव
सस्य संपत्ति की  वृद्धि हो
20.
अव्यय
अतिवृष्टि हो
21.
सर्वजीत
उत्तम वृष्टि का योग
22.
सर्वधारी
धान्यों की  अधिकता
23.
विरोधी
अनावृष्टि
24.
विकृति
भय कारक घटनाएं
25.
खर
पुरुषों में साहस व वीरता का संचार
26.
नंदन
प्रजा में आनंद
27.
विजय
दुष्टों का नाश
28.
जय
रोगों का शमन
29.
मन्मथ
विश्व में ज्वर का प्रकोप
30.
दुर्मुख
मनुष्यों की  वाणी में कटुता
31.
हेम्लम्बी
सम्पदा की  वृद्धि
32.
विलम्बी
अन्न की  प्रचुरता
33.
विकारी
दुष्ट व शत्रु कुपित हों
34.
शार्वरी
कृषि में वृद्धि
35.
प्लव
नदियों में बाढ़ का प्रकोप
36.
शुभकृत
प्रजा में शुभता
37.
शोभकृत
शुभ फलों की  वृद्धि
38.
क्रोधी
स्त्री पुरुषों में वैर ,रोग वृद्धि
39.
विश्वावसु
अन्न महंगा ,रोग व चोरों की  वृद्धि,राजा लोभी
40.
पराभव
रोग वृद्धि, प्रचुर वृष्टि,राजा का तिरस्कार ,तुच्छ धान्यों की  अधिकता
41.
प्ल्वंग
कृषि हानि ,प्रजा में रोग व चोरी ,राजाओं का युद्ध
42.
कीलक
पित्त विकार ,मध्यम वर्षा ,सर्प भय ,प्रजा में कलह
43.
सौम्य
राजा प्रसन्न ,शीत प्रकृति के रोग, मध्यम वर्षा ,सर्प भय
44.
साधारण
राजा व प्रजा सुखी ,कृषि के लिए वर्षा उत्तम
45.
विरोधकृत
राजाओं में वैर भाव , मध्यम वर्षा,प्रजा में आनंद
46.
परिधावी
अन्न महंगा , मध्यम वर्षा,प्रजा में रोग ,उपद्रव
47.
प्रमादी
जनता में आलस्य व प्रमाद की  वृद्धि
48.
आनंद
जनता में सुख व आनंद
49.
राक्षस
प्रजा में निष्ठुरता की  वृद्धि
50.
आनल
विविध धान्यों की  वृद्धि
51.
पिंगल
कहीं उत्तम व कहीं मध्यम वृष्टि
52.
कालयुक्त
धन धन्य की  हानि
53.
सिद्धार्थी
सम्पूर्ण कार्यों की  सिध्धि
54.
रौद्र
विश्व में रौद्र भाव की  अधिकता
55.
दुर्मति
मध्यम वृष्टि
56.
दुन्दुभी
धन धान्य की  वृद्धि
57.
रूधिरोद्गारी
हिंसक घटनाओं से रक्तपात
58.
रक्ताक्षी
रक्तपात से जनहानि
59.
क्रोधन
शासकों को विजय प्राप्त
60.
क्षय
प्रजा का धन क्षीण